यह समस्त जगत जिनके चिदाकाशमय स्वात्म दर्पण में प्रतिबिम्बित है वह भैरव हैं। वे ही जगत का भरण व स्वयं रवण करने के कारण भैरव कहलाते हैं। अनवर्थ रूप से संसार के भय ग्रस्त जीवों का कल्याण करने के कारण भी इनको भैरव कहा जाता है। ये ही स्व को अधीन कर संकुचित करने वाली करणों कि स्वामिनी संवित्ती देवियों के स्वामी हैं। शास्त्र कहते हैं कि ये भैरव नक्षत्रों के प्रेरक हैं। आंतर साधना में प्राणाचार कि तुटि आदि सूक्ष्म गणनाओं पर साधक को नियंत्रण प्रदान करने वाले हैं। ऐसे स्वामी जो कि काल का नियंत्रण करते हैं काल भैरव कहलाते हैं। ये तीर्थ के प्रधान निरीक्षक हैं, हर साधक के तीर्थ प्रवास काल का निर्धारण करने वाले व उनके कृत्यों के अनुरूप फल देने वाले हैं। काशी में तो काल भैरव को इन गुणों के कारण काशी के कोतवाल कहा जाता है।