।।श्री काल भैरव।।

यह समस्त जगत जिनके चिदाकाशमय स्वात्म दर्पण में प्रतिबिम्बित है वह भैरव हैं। वे ही जगत का भरण व स्वयं रवण करने के कारण भैरव कहलाते हैं। अनवर्थ रूप से संसार के भय ग्रस्त जीवों का कल्याण करने के कारण भी इनको भैरव कहा जाता है। ये ही स्व को अधीन कर संकुचित करने वाली करणों कि स्वामिनी संवित्ती देवियों के स्वामी हैं। शास्त्र कहते हैं कि ये भैरव नक्षत्रों के प्रेरक हैं। आंतर साधना में प्राणाचार कि तुटि आदि सूक्ष्म गणनाओं पर साधक को नियंत्रण प्रदान करने वाले हैं। ऐसे स्वामी जो कि काल का नियंत्रण करते हैं काल भैरव कहलाते हैं। ये तीर्थ के प्रधान निरीक्षक हैं, हर साधक के तीर्थ प्रवास काल का निर्धारण करने वाले व उनके कृत्यों के अनुरूप फल देने वाले हैं। काशी में तो काल भैरव को इन गुणों के कारण काशी के कोतवाल कहा जाता है।

श्री पीताम्बरा पीठ में स्थापित मंदिर

।।भगवती श्री पीतांबरा माई।।

जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति:, र्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
त्वया स्वामिनः! हृदि स्थितेन्
, यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि॥

भगवती श्री धूमावती

य ए॑नं परि॒षीद॑न्ति समा॒दध॑ति चक्ष॑से।
सं॒प्रेद्धो॑ अ॒ग्निर्जिह्वाभि॒रुदे॑तु हृदया॒दधि॑॥१॥
अ॒ग्नेः संताप॒नस्या॒हमायुषे प॒दमा र॑भे।
अ॒द्धा॒तिर्यस्य॒ पश्य॑ति धू॒ममु॒द्यन्त॑मास्य॒तः॥२॥ (अ०वे० – ६.७६)

श्री वनखंडेश्वर महादेव

दतिया प्राचीन साधना स्थली हैं यहां पर महाभारत कालीन शिवलिंग वनखण्डेश्वर के नाम से स्थित है

श्री स्वामी जी महाराज

श्री स्वामी जी महाराज ने वैदिक उपदेश में यजुर्वेद के मंत्र का संदर्भ देते हुए कहा कि ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया और साथ ही पाँच इंद्रिय प्रदान की ।

।।श्री षडाम्नाय शिव।।

आम्नाय का अर्थ होता है पवित्र पंथ या पवित्र शास्त्र जो कि एक पंथ द्वारा प्रवर्तित हैं। षड् का अर्थ हुआ छह।

श्री काल भैरव

यह समस्त जगत जिनके चिदाकाशमय स्वात्म दर्पण में प्रतिबिम्बित है वह भैरव हैं। वे ही जगत का भरण व स्वयं रवण करने के कारण भैरव कहलाते हैं।

श्री हनुमान जी

श्री हनुमान भक्त शिरोमणि एवं ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं। ज्ञान एवं भक्ति का अनन्य संबंध है। ज्ञान विवेक देता है और वो विवेक भक्ति को सुदृढ. बनाता है। वहीं ज्ञान कि प्राप्ति के लिए गुरु और इष्ट आराध्य के चरणों में भक्ति आवश्यक है।

श्री परशुराम भगवान

भगवान जामदग्नेय राम भगवान श्री हरि के अवतार हैं। उन्होंने अपने कुल के प्रणेता महर्षि भृगु के आदेश पर भगवान महादेव की तपस्या की व उनसे शस्त्र विद्या का ज्ञान अर्जित किया इस अवसर पर भगवान महादेव ने उनको कई दिव्य अस्त्र व शस्त्र प्रदान किए जिसमें परशु प्रमुख था।

॥श्री बटुक भैरव॥

भैरव जब ब्रह्मचारियों को ज्ञान देते हैं तब बटुक कहलाते हैं।

॥श्री हरिद्रा गणेश॥

श्री हरिद्रा गणेश का वर्णन श्री त्रिपुरा रहस्य में प्राप्त होता है।