भैरव जब ब्रह्मचारियों को ज्ञान देते हैं तब बटुक कहलाते हैं। वेदों में जिन विराट पुरुष कि वन्दना विराट छन्द से की जाती है वे ही क्षुद्र रूप में बटुक हो जाते हैं। ऐसा तथ्य भगवान श्री हरि के वामन अवतार कि कथा में भी प्राप्त होता है। संस्कृत में व एवं ब के पाठ में भेद नहीं मानते इस द्रष्टि से प्रलय काल में सम्पूर्ण जगत को स्व में लीन करने वाले वटुक कहलाते हैं। श्री बटुक भैरव व श्री गणपति का पूजन प्राण व अपान वायु को रुद्ध कर रामस्थ दशा प्राप्त करना है जो कि गुरु कृपा पर्यन्त प्राप्त होने वाला साधना गम्य तत्व है।