|| श्री पीताम्बरा पीठ का सरस्वती मन्दिर एवं पूज्यपाद ।।

(पुस्तकालय)

अनन्त श्रीविभूषित राष्ट्रगुरू श्री स्वामीजी महाराज को ग्रन्थों के प्रति बड़ा मोह था। पीठ में पुस्तकालय की स्थापना पूज्यपाद जी के द्वारा ही की गई थी। उन्होंने धीरे-धीरे ग्रन्थों का संकलन किया जिसने बाद में वृहद पुस्तकालय का रूप धारण किया। वर्तमान में वेद, व्याकरण, धर्म, दर्शन, तंत्रमंत्र, ज्योतिष, पुराण, कर्मकाण्ड आदि के लगभग सात हजार दुर्लभ ग्रन्थ संग्रहित हैं जिनकी प्रतियाँ अन्यत्र किसी पुस्तकालय में देखने को नहीं मिलतीं।

कुछ हस्तलिखित पाण्डुलिपियों जो आजतक अप्रकाशित हैं, पुस्तकालय में संग्रहित हैं। यहाँ पर यह लिखना प्रासंगिक होगा कि दतिया महाराज श्री गोविन्द सिंह जू देव के निजी पुस्तकालय से भी बहुत सी हस्तलिखित ग्रन्थ प्रतियों को पूज्यपाद जी ने प्राप्त किया था, जो प्राचीन थीं। दतिया के उदारचेता बहुत से पण्डितों ने भी पूज्यपाद जी को कुछ ग्रन्थ समर्पित किये थे। स्वामी जी की यह प्रवृति थी कि जो लोग उनके पास पहुँचते थे उनसे वे प्राचीन पुस्तके ले लेते थे। उरई के बाबूराम मिश्र से पक्षिराज पद्धति की पुरानी हस्तलिखित प्रति प्राप्त की थी। इस प्रकार पूज्यपाद जी द्वारा संग्रहित किये गये एक-एक ग्रन्थ का आज यह वृहद पुस्तकालय बन गया। इन सारे ग्रन्थों को सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए एक भवन की आवश्यकता पड़ी जो 1962 में हुए चीन के अनुष्ठान की पूर्ण आहुति के बाद शेष बची राशि से । पुस्तकालय भवन तैयार हो गया।

पुस्तकालय में पीठ से प्रकाशित ग्रन्थों का भी योगदान है जिनकी संख्या आज लगभग सत्तर है उन पर भी थोडा प्रकाश डालना समीचीन होगा।

अनेक दर्शन ग्रन्थों, तंत्र ग्रन्थों, उपनिषद् भाष्यों का प्रणयन पूज्यपाद जी की ऐसी देन है। जिसे जिज्ञासुओं विद्वानों के लिये वरदान कहा जा सकता है। साधना की दृष्टि से यद्यपि स्वामी जी शक्ति तन्त्रों को वरेण्य मानते थे तथापि न्याय, वेदान्त, षड्दर्शन एवं धर्म सिद्धान्तों पर उनका पूर्ण अधिकार था। भारत की सभी भाषाओं पर उनका अधिकार तो था ही, विदेशी भाषाओं के भी अच्छे ज्ञाता थे। व्याकरण, छन्दशास्त्र, वाक्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, संगीत आदि किसी भी विषय पर बड़े से बड़े पण्डित उनसे बात करने का साहस कठिनाई से कर पाते थे।

ईश केन, कठ, मुण्डक, माण्डूक्य, प्रश्नोपनिषद भाष्यों पर शक्ति परक भाष्यों की रचना कर उन्होंने दर्शन को नई दिशा में मोड़ दिया। आद्यशंकर के बाद उपनिषदों का ऐसा भाष्यकार कोई दूसरा नहीं हुआ। इसी प्रकार वेद भाष्य (वैदिक उपदेश) बगलामुखी रहस्य (जिसे तंत्र का इन्साइक्लोपीडिआ कहा जाता है), घेरण्डसंहिता, शिवसूत्र भक्तिसूत्र, लेख संग्रह, महात्रिपुरसुन्दरी पूजा पद्धति, चिविलास (श्री विद्या का आन्तरिक रहस्य) आदि ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है जो तन्त्र दर्शन की बेजोड़ निधि हैं। सौंदर्य लहरी के भी दो ऐसे भाष्य उनके द्वारा प्रकाशित कराये गये है जो अभी तक अनुपलब्ध रहे है।

षड्दर्शन बौद्ध और जैन, तांत्रिक दर्शन तथा संस्कृत व्याकरण, ज्योतिष, पाली प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, बंगाली, मराठी भाषाओं के सैकड़ो छात्र आश्रम में ही बने रहते थे जिन व्यक्तियों को स्वामी जी महाराज के चरणों में बैठकर कुछ भी सुनने या सीखने को सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे सचमुच धन्य है। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बनी रहेगी।

सरस्वती मन्दिर (पुस्तकालय) में सरस्वती पूजन पूज्यपाद जी के समय से ही प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र (मूल से श्रवण नक्षत्र तक), वसन्त पंचमी (श्री पंचमी) के दिन पूजन के बाद सिद्ध सरस्वती स्तोत्र का सामूहिक पाठ होता आया है, आज भी होता है।

पीठ से प्रकाशित ईशावास्य उपनिषद् की पूज्यपाद की योग पक्षीय टीका अद्वितीय पाण्डित्य की परिचायिका है।
कितना शास्त्र स्मरण, कितना व्याकरण शास्त्र पर अधिकार देखते ही बनता है। यों तो सभी शास्त्र पूज्यपाद जी को करामलकवत् थे किन्तु मुख व्याकरण स्मृतम के आधार पर विलक्षण प्रतिभा थी।

वैदिक उपदेश में गणेश का अर्थ ‘गणानान्त्वा’ मंत्र में, सरस्वती देवयतो’ मंत्र में व्याख्या अन्तः ‘सलिला सरस्वतीमिव दृष्टान्त पूज्यपाद के साहित्य शास्त्र का गंभीर अध्ययन बतला रहा है। वैदिक उपदेश ग्रन्थ के 100 मंत्रों की उनकी व्याख्या में सामाजिक एकता तत्व दृष्टि पर निष्ठा, राष्ट्रहित या लोक कल्याण की भावना जीती जागती उभर रही है।
देखिये ईश्वर कारणवाद – 178 पृष्ठ पर श्री राधा कृष्णनन् की उक्ति To realize the supreme spirit a certain purification of mind is necessary कह कर ऋते ज्ञानान्मुक्ति की सिद्धि विलक्षण है।

पूज्यपाद जी का तांत्रिक पंचांग देखिये। शाक्त दर्शन का हृदय कह सकते हैं। यह षोडशांगो वाला तांत्रिक पंचांग हमारे देश में अपने ढंग का विलक्षण और एकमात्र पंचांग है। लंदन के सुप्रसिद्ध प्रकाशक राइटर एन्ड कम्पनी द्वारा प्रकाशित टीप – The Tantrik Tradition के Bibliographical Section के पृष्ठ 311 पर इस अद्वितीय पंचांग के संबंध में इस प्रकार उल्लेख किया गया है-

Datia Swami Tantrik Panchang five limbs of tantric worship a short-realize wellknown both in Bengal and the South.CH.SS.002/63.

यह सोलह महीने का अर्थात् 576 दिन का तांत्रिक पंचांग हर 16 महीने बाद प्रकाशित होता है। आगे आने वाला तांत्रिक पंचांग अक्टूबर 22 में प्रकाशित होगा।

पूज्यपाद जी द्वारा रचित पीठ से प्रकाशित ग्रन्थ सिद्धान्त रहस्य सार्वभौम सनातन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले उपनिषदों की भाँति समस्त मानवता के कल्याण के लिये ग्रथित किया गया है। इस मणिमाला में ग्रथित 109 सिद्धान्त मानव जाति के कल्याण के लिये सर्वथा समर्थ हैं।

ॐ शम्

श्री पीताम्बरा पीठ में स्थापित मंदिर

।।भगवती श्री पीतांबरा माई।।

जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति:, र्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
त्वया स्वामिनः! हृदि स्थितेन्
, यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि॥

भगवती श्री धूमावती

य ए॑नं परि॒षीद॑न्ति समा॒दध॑ति चक्ष॑से।
सं॒प्रेद्धो॑ अ॒ग्निर्जिह्वाभि॒रुदे॑तु हृदया॒दधि॑॥१॥
अ॒ग्नेः संताप॒नस्या॒हमायुषे प॒दमा र॑भे।
अ॒द्धा॒तिर्यस्य॒ पश्य॑ति धू॒ममु॒द्यन्त॑मास्य॒तः॥२॥ (अ०वे० – ६.७६)

श्री वनखंडेश्वर महादेव

दतिया प्राचीन साधना स्थली हैं यहां पर महाभारत कालीन शिवलिंग वनखण्डेश्वर के नाम से स्थित है

श्री स्वामी जी महाराज

श्री स्वामी जी महाराज ने वैदिक उपदेश में यजुर्वेद के मंत्र का संदर्भ देते हुए कहा कि ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया और साथ ही पाँच इंद्रिय प्रदान की ।

।।श्री षडाम्नाय शिव।।

आम्नाय का अर्थ होता है पवित्र पंथ या पवित्र शास्त्र जो कि एक पंथ द्वारा प्रवर्तित हैं। षड् का अर्थ हुआ छह।

श्री काल भैरव

यह समस्त जगत जिनके चिदाकाशमय स्वात्म दर्पण में प्रतिबिम्बित है वह भैरव हैं। वे ही जगत का भरण व स्वयं रवण करने के कारण भैरव कहलाते हैं।

श्री हनुमान जी

श्री हनुमान भक्त शिरोमणि एवं ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं। ज्ञान एवं भक्ति का अनन्य संबंध है। ज्ञान विवेक देता है और वो विवेक भक्ति को सुदृढ. बनाता है। वहीं ज्ञान कि प्राप्ति के लिए गुरु और इष्ट आराध्य के चरणों में भक्ति आवश्यक है।

श्री परशुराम भगवान

भगवान जामदग्नेय राम भगवान श्री हरि के अवतार हैं। उन्होंने अपने कुल के प्रणेता महर्षि भृगु के आदेश पर भगवान महादेव की तपस्या की व उनसे शस्त्र विद्या का ज्ञान अर्जित किया इस अवसर पर भगवान महादेव ने उनको कई दिव्य अस्त्र व शस्त्र प्रदान किए जिसमें परशु प्रमुख था।

॥श्री बटुक भैरव॥

भैरव जब ब्रह्मचारियों को ज्ञान देते हैं तब बटुक कहलाते हैं।

॥श्री हरिद्रा गणेश॥

श्री हरिद्रा गणेश का वर्णन श्री त्रिपुरा रहस्य में प्राप्त होता है।