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मंदिर खुलने का समय प्रातः 5 बजे से रात्रि: 11 बजे

पीठ परिचय

भारतवर्ष के हृदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित दतिया नामक नगर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्व विख्यात है। कहा जाता है कि इस नगर का नाम शिशुपाल के भाई दन्तवक्त्र के नाम पर पड़ा जो कि कालान्तर में दतिया नाम से प्रसिद्ध हुआ।

जुलाई १९२९ को एक युवा संन्यासी झाँसी से ग्वालियर जाते हुए एक रात के लिए इस नगर में रुके। इस छोटे से शहर में संस्कृत के नाना उद्भट विद्वानों को देखकर वे यहीं के हो कर रह गए। उन महात्मा का नाम कोई नहीं जानता था इसलिए नगरवासी उन्हें ससम्मान ‘श्री स्वामी जी महाराज’ कहने लगे। नगर के विविध स्थानों पर रहते हुए दिसंबर १९२९ को वे श्री वनखण्डेश्वर परिसर में पहुँचे। इस स्थान को देखते ही यहाँ पूर्व में हुई तपस्याओं का तेज उन्हें प्रतीत हुआ, जिससे आनंन्दित हो त्रिकालज्ञ श्री स्वामी जी ने वहीं पर रहकर तप करने का निश्चय किया। और पढ़ें….

।।भगवती श्री पीतांबरा माई।।

सृष्टि का प्रसार कर ब्रह्म (जिन्हें हम प्रेम पूर्वक शिव भी कहते हैं) के आनंद हेतु नाना क्रीड़ा-कलाप करने में उद्धत भगवती श्री पीताम्बरा (जिन्हें उनके अगाध मातृत्व के कारण उनकी संतानें श्री पीताम्बरा माई भी बुलाते हैं) समस्त जगत के चराचर जीवों की चेतना की अधिष्ठात्री हैं। विश्व के समस्त जीवों के हृदय में व्याप्त चेतना जब भगवती पीताम्बरा माई के स्नेह सिंचित होती है तब वह जीव समस्त मोह बन्धनों का त्याग कर पुन: शिव पद को प्राप्त करता है। आणव, कर्म एवं मायीय मल स्वरूप शत्रु-त्रिमूर्ति को स्तंभित कर उनका हनन करके माई लोक के उद्धार में तत्पर हैं। भगवती यूँ तो नित्य हैं तदापि संसार में वास कर रही अपनी संतानों के उद्धार के निमित्त माई कई बार मूर्त रूप लेकर विश्व का कल्याण करती रही हैं। और पढ़ें….

श्री पीताम्बरा पीठ में स्थापित मंदिर

।।भगवती श्री पीतांबरा माई।।

जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति:, र्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
त्वया स्वामिनः! हृदि स्थितेन्
, यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि॥

भगवती श्री धूमावती

य ए॑नं परि॒षीद॑न्ति समा॒दध॑ति चक्ष॑से।
सं॒प्रेद्धो॑ अ॒ग्निर्जिह्वाभि॒रुदे॑तु हृदया॒दधि॑॥१॥
अ॒ग्नेः संताप॒नस्या॒हमायुषे प॒दमा र॑भे।
अ॒द्धा॒तिर्यस्य॒ पश्य॑ति धू॒ममु॒द्यन्त॑मास्य॒तः॥२॥ (अ०वे० – ६.७६)

श्री वनखंडेश्वर महादेव

दतिया प्राचीन साधना स्थली हैं यहां पर महाभारत कालीन शिवलिंग वनखण्डेश्वर के नाम से स्थित है

श्री स्वामी जी महाराज

श्री स्वामी जी महाराज ने वैदिक उपदेश में यजुर्वेद के मंत्र का संदर्भ देते हुए कहा कि ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया और साथ ही पाँच इंद्रिय प्रदान की ।

।।श्री षडाम्नाय शिव।।

आम्नाय का अर्थ होता है पवित्र पंथ या पवित्र शास्त्र जो कि एक पंथ द्वारा प्रवर्तित हैं। षड् का अर्थ हुआ छह।

श्री काल भैरव

यह समस्त जगत जिनके चिदाकाशमय स्वात्म दर्पण में प्रतिबिम्बित है वह भैरव हैं। वे ही जगत का भरण व स्वयं रवण करने के कारण भैरव कहलाते हैं।

श्री हनुमान जी

श्री हनुमान भक्त शिरोमणि एवं ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं। ज्ञान एवं भक्ति का अनन्य संबंध है। ज्ञान विवेक देता है और वो विवेक भक्ति को सुदृढ. बनाता है। वहीं ज्ञान कि प्राप्ति के लिए गुरु और इष्ट आराध्य के चरणों में भक्ति आवश्यक है।

श्री परशुराम भगवान

भगवान जामदग्नेय राम भगवान श्री हरि के अवतार हैं। उन्होंने अपने कुल के प्रणेता महर्षि भृगु के आदेश पर भगवान महादेव की तपस्या की व उनसे शस्त्र विद्या का ज्ञान अर्जित किया इस अवसर पर भगवान महादेव ने उनको कई दिव्य अस्त्र व शस्त्र प्रदान किए जिसमें परशु प्रमुख था।

॥श्री बटुक भैरव॥

भैरव जब ब्रह्मचारियों को ज्ञान देते हैं तब बटुक कहलाते हैं।

॥श्री हरिद्रा गणेश॥

श्री हरिद्रा गणेश का वर्णन श्री त्रिपुरा रहस्य में प्राप्त होता है।

मंदिर का मुख्य द्वार खुलने एवं दर्शन का समय

प्रातः 5 बजे

मंदिर का मुख्य द्वार बंद होने का समय

रात्रि: 11 बजे

श्री पीताम्बरा माई के शयन का समय

दोपहर: 12 बजे से 2 बजे

श्री पीताम्बरा माई के पट बंद का समय

रात्रि: 10 बजे