यह जो राक्षस आदि स्वस्त्ययन चाहने वाले पुरुष को मारने के लिए उद्यत हैं और घेर बैठे हैं उनके हृदय में उनको भस्म करने वाली अग्नि अपनी जिह्वा सहित उदित हो जावे॥१॥ अद्धाति ऋषि जिस अग्नि के धुएं को अपने मुख से निकलते हुए देख चुके हैं उस परम संतप्त करने वाले अग्नि के वाचक शब्द को मैं जीवन पाने के लिए आरंभ करता हूं।
भगवती श्री चिति के समस्त स्वरूपों में सर्वथा विचित्र भगवती श्री धूमावती का चरित्र है। जहां अन्य समस्त स्वरूप लौकिक सुख व मोक्ष सहज ही प्रदत्त करते हैं भगवती श्री धूमावती संसार के समस्त ऐश्वर्यों को नष्ट कर लौकिक संबंधों से मुक्त कर साधक को मोक्ष मार्ग पर ले जाती हैं। भगवती इन कृत्यों के कारण अलक्ष्मी नाम से भी प्रसिद्ध हैं। आप भगवती श्री लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी हैं, ज्येष्ठ मास की शुक्लाष्टमी को ज्येष्ठा नक्षत्र में अवतरित हूई हैं इसलिए आप को ज्येष्ठा भी कहा जाता है। आप सदा पापात्मा असुरों के मध्य निवास करती हैं इसलिए आप को निर्ऋति भी कहा जाता है।
आपकी अनादि काल से साधना की जाती है। आप की साधना से लोक पर संकट से मुक्ति का प्रभाव देखा गया है। शुम्भ-निशुम्भ से त्रस्त देव आपकी शरण में आए और शोक मुक्त हुए-
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः॥११॥
दुर्गायै दुर्गापारायै सारायै सर्वकारिण्यै।
ख्यत्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः॥१२॥
(श्री दुर्गा सप्तशती -५)
आप तामसिक प्रवृत्ति के लोलुप व्यक्तियों के लिए अलक्ष्मी हैं तो मुमुक्षु सन्यासियों के लिए आप मोक्षदायिनी हैं यह पूर्वोद्धृत अथर्व मन्त्रों से सिद्ध है। आपका जहां भी निवास होता है वहां पर सब ऐश्वर्य-धन नष्ट हो जाता है। यह दशा सन्यासियों के लिए सर्वोत्तम है इसलिए आप सन्यास मार्ग की परमोपास्या हैं। आपके इस स्वरूप से भय खा कर गृहस्थ भगवती श्री लक्ष्मी का वरण करते हैं-
….ऽलक्ष्मीः मे नश्यतां त्वां वृणे॥
आप की साधना सन्यासियों या ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’ के सिद्धान्त पर चलने वाले गृहस्थों के लिए प्रशस्त है। आपने ही महाभाग राजा सुरथ व समाधि वैश्य को सद्गुरु प्राप्त कराने, ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त कराने व तप कराके अपने परम स्वरूप का दर्शन देने हेतु उपकृत किया। यह सब भगवती का भेद स्वरूप है।
सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त है कि प्राणों का गमन तीन मार्गोंसे होता हैः पितृयान, देवयान व मध्यमार्ग। मध्यमार्ग सुषुम्ना है यह सीधे ब्रह्मलोक ले जाता है। देवयान पर गया जीव अपवर्गों का भोग करता है। पितृयान मार्ग संसार में भटक रहे पशुओं का मार्ग है। यह प्रेतों के परलोक गमन का मार्ग है। यह मार्ग धुएं से भरा है और प्रेत इत्यादि स्वयं भी धूम्र में परिवर्तित हो जाते हैं ऐसा छांदोग्य उपनिषद् के पांचवे अध्याय के दसवें खण्ड में कहा गया है-
… धूममभिसम्भवन्ति … (५)
यह मार्ग इष्टापूर्ति में संलग्न गृहस्थों (पशुओं) का है ऐसा आचार्य शड़्कर का मत है। यह आवागमन का पथ है। इस मार्ग की अधिष्ठात्री भगवती श्री धूमावती हैं। यही कारण है की बलि के लिए धूम्र वर्ण के पशु प्रशस्त हैं-
कृ॒ष्णा भौ॒मा धू॒म्रा आ॑न्तरि॒क्षा बृ॒हन्तो॑ दि॒व्याः…
(शु०य० – २४.१०)
सद्गृहस्थ अगर त्याग कर भोगने की प्रवृत्ति को अपना लें तो भगवती श्री धूमावती की कृपा से उनको धूम्रमार्ग पर नहीं जाना पड़ेगा। यह भगवती का भेदाभेद स्वरूप है।
भगवती श्री धूमावती का अभेद स्वरूप श्री गुरु चरण पादुकाब्ज की कर्णिका में निगुम्फित है। श्री गुरु चरण पादाब्ज निष्यंद मत्त चंचरीक को यह सदा सुलभ है।
भगवती श्री धूमावती दश महाविद्याओं (ब्रह्मविद्याओं) में हैं। दशमहाविद्याओं के बारे में कहा गया है कि उनकी साधना के लिए किसी देश-काल व परिस्थिति की व्याख्या नहीं है। आप सर्वदा पूजित हैं व आपकी साधना मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्रदत्त करती है। इनकी साधना में गुरु कृपा के अलावा दिन और नक्षत्र इत्यादि कुछ भी विचार ग्राह्य नहीं है।
नात्र सिद्धाद्यपेक्षास्ति नक्षत्रादिविचारणा।
कालादिशोधनं नास्ति नारिमित्रादिदूषणम्॥
सिद्धविद्यातया नात्र युगसेवापरिश्रमः।
नास्ति किञ्चिन्महादेवि दुःखसाध्यं कदाचन॥
(श्री मुण्डमाला तन्त्र – १)
भगवती श्री धूमावती मुमुक्षु सन्यासियों व सद्गृह्स्थों द्वारा सर्वदिन आराध्याय हैं। इनकी साधना में किसी प्रकार से दिन नक्षत्रादि का विचार नहीं है।
श्री धूमवती माई की आरती/दर्शन विवरण
रविवार से शुक्रवार को सुबह एवं रात्रि
8 बजे
शनिवार सुबह आरती एवं दर्शन
प्रातः 7:15 बजे से 9:00 तक
शनिवार रात्रि दर्शन एवं आरती
सांय 5:00 से 8:00 तक
विशेष :- श्री धूमावती माई के दर्शन केवल आरती के समय होते हैं। (शनिवार छोड़कर)