आम्नाय का अर्थ होता है पवित्र पंथ या पवित्र शास्त्र जो कि एक पंथ द्वारा प्रवर्तित हैं। षड् का अर्थ हुआ छह। भगवान शिव के पाँच वक्त्रों से पांच दिशाओं से पाँच आम्नाय प्रकट हुए। ये पाँच है पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर व ऊर्ध्व (ऊपर)। इनके अलावां छठा आम्नाय अनुत्तराम्नाय या अधराम्नाय है। पाँच प्रथम आम्नाय भगवान शिव के पंच कृत्य सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोधान व अनुग्रह के प्रतीक भी हैं। ये शिव कि शक्तियों चिद, आनंद, इच्छा, ज्ञान व क्रिया के भी द्योतक है। धन शमशेर जी कहते हैं कि मोक्ष तो एक आम्नाय कि साधना से ही प्राप्त हो जाता है लेकिन समस्त आम्नायों कि साधना से तो साधक साक्षात शिव हो जाता है। षडाम्नाय के बिना षटचक्र (कुण्डलिनी के छह चक्र) शुद्ध नहीं होते, ऐसे में शिवत्व प्राप्ति असंभव है। हमारे शरीर में षोडश आधार हैं। प्रत्येक आम्नाय के मूल मन्त्र के षोडश भाग हैं। मन्त्र के प्रत्येक भाग का शरीर के प्रत्येक भाग के साथ मन्त्रार्थ अभ्यास करने से मन्त्र जागृत हो जाता है। जिस आम्नाय का मन्त्र जागृत होता है उसके संबंधित चक्र में विशेष प्रकार कि झनझनाहट होती है व नाद भी सुनने में आता है। वह चक्र अपने मन्त्र के रूप में परिवर्तित हो जाता है और घर्षण से वायु निकल कर ब्रह्म-रन्ध्र में जाती है फिर वायु ब्रह्म-रन्ध्र से ब्रह्म कि ओर बढ़ जाती है इससे ब्रह्म-रन्ध्र खुल जाता है और उससे एक तन्तु प्रकट होता है। साधक का कर्तव्य है कि वह उस तन्तु को सम्हाले नहीं तो मोक्ष संभव नहीं। तन्तु सफेद भाप कि तरह होता है जो इसका साक्षात्कार कर लेता है वही तान्त्रिक होता है। इस प्रकार से षडाम्नाय महादेव के मन्त्रों से ही मोक्ष प्राप्ति संभव है। इन आम्नायों का इतना प्रभाव है कि भगवान आदि शंकर ने चार पीठ कि स्थापना चार आम्न्यों के आधार पर की। प्रत्येक आम्नाय के शिव को पीठ में स्थापित कर अनन्त श्री स्वामी जी ने पीठ को सर्वज्ञ पीठ बना दिया है।
तत्पुरुष महादेव
पूर्वाम्नाय नाम से प्रसिद्ध भगवान तत्पुरुष तत्व रूप मे सृष्टि माने जाते हैं। शुद्धविद्या, बाला परमेश्वरी, द्वादशार्धाम्बा, हसन्ती श्यामालाम्बा और मातड्गीश्वरी आदि के मन्त्र इस आम्नाय से संबद्ध हैं। अन्य मत से यह आम्नाय दासवत साधना का मार्ग है।
अघोर महादेव
दक्षिणाम्नाय नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का यह आम्नाय तत्व रूप में स्थिति है। इस आम्नाय में भगवती श्री सौभाग्यविद्याम्बा, भगवती श्री पीताम्बरा व भगवती श्री वाराही और बटुक भैरव व श्री मृत्युञ्जय के मन्त्र आते हैं। इस आम्नाय को ज्ञान का प्ररंभिक बिन्दु मानते है और साधना भक्ति योग द्वारा होती है।
सद्योजात महादेव
पश्चिमाम्नाय नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का यह आम्नाय तत्व रूप में संहार है। इस आम्नाय कि नायिका भगवती श्री कुब्जिका हैं। इस आम्नाय में भगवती श्री कुब्जिका, लोपामुद्रा, भुवनेश्वरी, अन्नपूर्णा व श्रीकामकलाम्बा व हनुमान के मन्त्र आते हैं। ये ज्ञान की उत्तर या प्रौढ. अवस्था है इसमें कर्म योग से साधना होती है व साधक व साध्य का भेद समाप्त हो जाता है।
वामदेव महादेव
उत्तराम्नाय नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का यह आम्नाय तत्व रूप से अनुग्रह माना जाता है। इस आम्नाय में तुरीयाम्बा, महार्धाम्बा, अश्वारूढ़ा, मिश्राम्बा और वाग्वादिनी आदि के मन्त्र आते हैं। यह ज्ञान की पूर्णता स्थिति मानी जाती है एवं साधना ज्ञान योग द्वारा होती है।
ईशान महादेव
ऊर्ध्वाम्नाय नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का यह आम्नाय तत्व रूप में साक्षात शिव है। श्री कुलार्णव तन्त्र का श्री परा प्रासाद मन्त्र इसका प्रधान मन्त्र है इसके अलावा श्री पराम्बा और श्री पराशाम्भवी के मन्त्र भी इसी आम्नाय में हैं। यह ज्ञान कि भूमिका कि पराकाष्ठा होने से इसमें साधना शिव के साथ अभेद प्राप्त कर की जाती है।
नीलकण्ठ महादेव
सामान्य रूप से अवर्णित यह आम्नाय अनन्त श्री स्वामी जी महाराज के अनुग्रह से हमें सुलभ हुआ है। इसके अंतर्गत अनुत्तराम्नाय के श्री अनुत्तराम्बा, श्री राजराजेश्वरी और श्री कालकर्षिणी आदि देवताओं के मन्त्र आते हैं।