श्री पीताम्बर विद्यालय
- श्री पीताम्बरा पीठ संस्कृत विद्यालय
- श्री पीताम्बरा पीठ संस्कृत महाविद्यालय
- श्री पीताम्बरा पीठ संगीत महाविद्यालय
- श्री सरस्वती पुस्तकालय
सृष्टि का प्रसार कर ब्रह्म (जिन्हें हम प्रेम पूर्वक शिव भी कहते हैं) के आनंद हेतु नाना क्रीड़ा-कलाप करने में उद्धत भगवती श्री पीताम्बरा (जिन्हें उनके अगाध मातृत्व के कारण उनकी संतानें श्री पीताम्बरा माई भी बुलाती हैं) समस्त जगत के चराचर जीवों कि चेतना की अधिष्ठात्री हैं। विश्व के समस्त जीवों के हृदय में व्याप्त चेतना जब भगवती श्री पीताम्बरा माई के स्नेह से सिंचित होती है तब वह जीव समस्त मोह बन्धनों का त्याग कर पुन: शिव पद को प्राप्त करता है। आणव, कर्म एवं मायीय मल स्वरूप शत्रु-त्रिमूर्ति को स्तंभित कर उनका हनन करके माई लोक के उद्धार में तत्पर हैं।
भारतवर्ष के हृदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित दतिया नामक नगर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्व विख्यात है। कहा जाता है कि इस नगर का नाम शिशुपाल के भाई दन्तवक्त्र के नाम पर पड़ा जो कि कालान्तर में दतिया नाम से प्रसिद्ध हुआ। जुलाई 1929 को एक युवा संन्यासी झाँसी से ग्वालियर जाते हुए एक रात के लिए इस नगर में रुके। इस छोटे से शहर में संस्कृत के नाना उद्भट विद्वानों को देखकर वे यहीं के हो कर रह गए। उन महात्मा का नाम कोई नहीं जानता था इसलिए नगरवासी उन्हें ससम्मान ‘श्री स्वामी जी महाराज’ कहने लगे। नगर के विविध स्थानों पर रहते हुए दिसंबर 1929 को वे श्री वनखण्डेश्वर परिसर में पहुँचे। इस स्थान को देखते ही यहाँ पूर्व में हुई तपस्याओं का तेज उन्हें प्रतीत हुआ, जिससे आनंन्दित हो त्रिकालज्ञ श्री स्वामी जी ने यहीं पर रहकर तप करने का निश्चय किया। परिसर में ही एक छोटा सा कमरा था जिसपर खपरैल की छत थी एवं उत्तर दिशा में एक टूटा दरवाज़ा था, जो बन्द तक नहीं होता था।
भारतवर्ष के हृदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित दतिया नामक नगर अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्व विख्यात है। कहा जाता है कि इस नगर का नाम शिशुपाल के भाई दन्तवक्त्र के नाम पर पड़ा जो कि कालान्तर में दतिया नाम से प्रसिद्ध हुआ। जुलाई 1929 को एक युवा संन्यासी झाँसी से ग्वालियर जाते हुए एक रात के लिए इस नगर में रुके। इस छोटे से शहर में संस्कृत के नाना उद्भट विद्वानों को देखकर वे यहीं के हो कर रह गए। उन महात्मा का नाम कोई नहीं जानता था इसलिए नगरवासी उन्हें ससम्मान ‘श्री स्वामी जी महाराज’ कहने लगे।
सृष्टि का प्रसार कर ब्रह्म (जिन्हें हम प्रेम पूर्वक शिव भी कहते हैं) के आनंद हेतु नाना क्रीड़ा-कलाप करने में उद्धत भगवती श्री पीताम्बरा (जिन्हें उनके अगाध मातृत्व के कारण उनकी संतानें श्री पीताम्बरा माई भी बुलाती हैं) समस्त जगत के चराचर जीवों कि चेतना की अधिष्ठात्री हैं। विश्व के समस्त जीवों के हृदय में व्याप्त चेतना जब भगवती श्री पीताम्बरा माई के स्नेह से सिंचित होती है तब वह जीव समस्त मोह बन्धनों का त्याग कर पुन: शिव पद को प्राप्त करता है। आणव, कर्म एवं मायीय मल स्वरूप शत्रु-त्रिमूर्ति को स्तंभित कर उनका हनन करके माई लोक के उद्धार में तत्पर हैं।