।।भगवती श्री पीताम्बरा माई।।

जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति, र्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
त्वया स्वामिनः! हृदि स्थितेन्, यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि॥

अन्तरायतिमिरौघशान्तये स्वेष्टशक्तिकरुणाऽरुणाप्रभम्।
सन्तनोतु मुनिवृन्दसेवितम् भावगम्यमनिशं शिवं महः॥१॥

करुणापूरितचित्तां सच्चिद्रूपां परां दिव्याम्।
ब्रह्मसहचरीं तुर्यां बगलाशक्तिं प्रणौमि सौभाग्याम्॥२॥

बहुत समय पहले की बात है या यूं कहें कि तब की बात है जब समय था ही नहीं। भगवान शिव अपने स्व में लीन थे। कहां थे यह नहीं बता सकते क्योंकि कोई स्थान नहीं था। तब न सत्य था न असत्य, न दिन था न रात, न कोई मन्त्र था न कोई साधक, न कोई तीर्थ था और न भक्त थे, कोई पुण्य नहीं था कोई पाप भी नहीं था, न कोई उद्यम था। केवल शिव थे अपने स्व में लीन।

उन शिव में अचनाक स्पन्दन हुआ और शांत शिव को सपन्द ने अब उद्योत अवस्था में ला दिया था। यह स्पन्द महाचिति हैं। इनके प्रभाव से शिव में आह्लाद उत्पन्न हुआ, आह्लादित शिव के हृदय में आनंद के वर्धन हेतु लीला की इच्छा हूई। तब उनकी महाचिति ने शिव से उभय अवस्था में अपने को शक्ति रूपी दर्पण स्वरूप में प्रकट कर उसमें शिव को ही विश्व रूप में प्रतिबिंबित किया। श्री महाचिति के ऐसा करने पर तत्काल सदाशिव व ईश्वर तत्त्वों का सृजन हुआ। ईश्वर तत्त्व के अंतर्गत ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र व ईश्वर प्रकट हुए। आपने ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र को क्रमशः सृष्टि, स्थिति व संहार कार्य में लगाया। आपके प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन करने हेतु ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र व ईश्वर आपके महासिंहासन के चार पाए बने व सदाशिव स्वयं उस सिंहासन पर बिछावन बने। सदाशिव के हृदय पर शिव श्री कामेश्वर के सगुण रूप में विराजमान हुऐ व आप भगवती श्री कामेश्वरी के रूप में उनके अंक पर विराजमान हूईं। अपने इस सगुण रूप में आप भगवती श्री ललिता त्रिपुर सुंदरी के रूप में भासित हूईं। महाचिति का यह सगुण रूप ही इस सृष्टि का मूल है।

आपके आदेश पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की व श्री विष्णु इसके संचालन को उद्धत हुए। नवनिर्मित सृष्टि के संचालन में अपने को समर्थ न पाने पर श्री विष्णु ने आप ही की आराधना हरिद्रा-सरोवर के तट पर प्रारंभ की। श्री विष्णु के तप से प्रभावित हो कर आप वैष्णवी शक्ति संपन्न हो उस हरिद्रा सरोवर में क्रीड़ा करने लगीं। आपकी इस लीला का रहस्य है कि आपकी कृपा से सृष्टि का संचालन सुचारु हो गया। यह आप ही की महिमा है कि पृथ्वी इत्यादि ग्रह सुचारु रूप से अपनी कक्षा में घूर्णन व पथ पर परक्रिमा कर रहे हैं। आपकी कृपा से यह सृष्टि जिसमें पृथ्वी इत्यादि असंख्य ग्रह हैं, आज सुचारु रूप से चलायमान है।

आपके मूल बीज मंत्र में पृथ्वी बीज है, इसका रहस्य यह है कि आप सृष्टि की संचालक शक्ति हैं। पृथ्वी बीज होने के कारण राजसत्ता व भूमि संबंधित विषयों की भी आप ही अधिष्ठात्री हैं।

समस्त श्रृष्टि की महाराज्ञी भगवती श्री पीतांबरा के बारें में सामान्य पशु भाव से सोचने पर मन को अपनी तुच्छता का अहसास होता है। मन कहता है, भला इतनी बड़ी महारानी कभी मेरे बारे में सोचती होंगी? पर सत्य तो यह है कि जिस क्षण आप हमारे बारे में सोचना बंद कर देंगी उसी क्षण हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। आप तो सृष्टि का भार विष्णु इत्यादि को सौंप कर सदा हमारा पालन पोषण करती रहती हैं। उदाहरणार्थ आप एक कुल-वधु को देखें, कुल-वधु अपने भरे-पूरे परिवार के कार्यों में सदा व्यस्त रहती हैं लेकिन जब मां बनती हैं तो उनका मन केवल अपनी संतान पर लगा रहता है और वह जैसे-तैसे अन्य कार्यों को निपटा कर सदा अपनी संतान के पास जाने को व्याकुल रहती हैं। ठीक इसी प्रकार से भगवती श्री पीतांबरा माई का भी प्रेम है। जिस प्रकार से कुल-वधु की संतान अबोध होने के कारण अपनी मां के परिश्रम व प्रेम को नहीं जान पाती उसी प्रकार से हम अज्ञानी भी माई के प्रेम को नहीं जान पाते। माई के इस प्रेम का साक्षात्कार हमें श्रीसद्गुरुदेव श्री स्वामी जी महाराज ने कराया है। आपने अपने तपोबल व करुणार्द हृदय से हम जैसे संसारी मनुष्यों को माई के प्रेम को अनुभूत कराने हेतु वैशाख शुक्ल चतुर्थी (सन् उन्नीस सौ चौतीस) को भगवती के श्री पीतांबरा पीठ की स्थापना की है। कहते हैं जिसे भगवती के दर्शन हो जाए वह सिद्ध हो जाता है मन सोचता है कि जो नित्य लाखों को भगवती के दर्शन कराए वह तो शिव ही होंगे।

श्री सांख्यायन तंत्र में आपको प्रज्ञाकर्षण शक्ति कहा गया है जिसका अर्थ हुआ कि कौन किस विषय को किस प्रकार से समझेगा यह आप निर्धारित करती हैं। इसका अनुपम उदाहरण श्री देवी माहात्म्यम् के तेरहवे अध्याय में देखने को मिलता है। राजा सुरथ व समाधि वैश्य के एक ही गुरु हैं महर्षि मेधा। दोनों को एक ही उपदेश मिला, दोनों ने एक साथ, एक स्थान पर तपस्या की व तप साथ-साथ पूर्ण हुआ पर वर मांगने के समय समाधि वैश्य ने मोक्ष मांगा व राजा सुरथ ने अपना राज्य मांगा। यह भगवती श्री पीतांबरा का ही प्रभाव है कि एक ही तप करने पर भी परणति की इच्छा संबंधी भाव दोनों में अलग-अलग उत्पन्न होते हैं। कोई मोक्ष की आकांक्षा रखता है तो यह केवल आप ही का अनुग्रह है। इसका प्रभाव लोक में न्यायिक वाद इत्यादि में आपकी कृपा के रूप में परिलक्षित होता है जहां आप प्रतिवादी की प्रज्ञा का कर्षण कर देती हैं लेकिन आप मुकदमे की देवी हैं यह सोचना नितांत अनुचित है। आप तो प्रज्ञाकर्षिणी हैं।

 

श्री महाराज जी द्वारा प्रणीत तांत्रिक व वैदिक पद्धति से भगवती की नित्य आराधना यहां अनवरत हो रही है व उन्हीं के वचनानुसार अगर ऐसा अर्चन क्रम चलता रहा तो भगवती यहां पर एक हजार वर्षों तक निवास करेंगी। हमारी श्री स्वामी जी व श्री पीतांबरा माई यही प्रार्थना है कि जब तक यह सृष्टि रहे तब तक हमें इसी प्रकार प्रेम पूर्वक स्नेह से सिंचित करते रहें।

 

आरती समय सारणी

श्री पीताम्बरा माई की आरती विवरण

सुबह – 7 बजे

सायं – 7 बजे

शृंगार आरती – रात्रि 8:30 बजे

शयन आरती/महा आरती – रात्रि 9 बजे